The time of the year for Ramayana rendition. This year the topic is centered around Ravana's kith and kin. It is about their emotions, how they felt about Ravana and how much they loved him. They went to war and gave up their lives for him not only because it was his order, but they truely felt for him. There is so much to learn from our epics and hope we continue to learn. Jai Shri Ram !!
चारो ओर विशाल समुन्दर, पशु पक्षी भर सुन्दर वन,
ऊपर छत पर नीला अम्बर , नीचे झुको तो स्वर्ण भवन !
ऊपर छत पर नीला अम्बर , नीचे झुको तो स्वर्ण भवन !
कुबेर का गर्व, रावण की शान, लंका का धन है अपरम्पार,
सुखी परिवार, राज्य संपन्न, महादेव की कृपा है अपार !
सुखी परिवार, राज्य संपन्न, महादेव की कृपा है अपार !
व्यथित विभीषण, कठिन समस्या, अपने ज्येष्ठ से किये अनुरोध,
"लंका से बढ़कर क्या सुन्दर भ्राता , त्याग दो अपना हठ और क्रोध.
"लंका से बढ़कर क्या सुन्दर भ्राता , त्याग दो अपना हठ और क्रोध.
रण की अपेक्षा में दानव उत्सुक. वानर सेना खड़ी सरहद पर,
पुरुष नहीं है इस पृथ्वी के , अयोध्या के दो राज कुमार !
पुरुष नहीं है इस पृथ्वी के , अयोध्या के दो राज कुमार !
रघुकुल में जन्मे है नारायण, पिता के वचन हेतु करे वनवास,
स्त्री का अपहरण उचित बात नहीं, भेज दो सीता को राम के पास !”
स्त्री का अपहरण उचित बात नहीं, भेज दो सीता को राम के पास !”
रावण अपने हठ पर अड़े रहे , कठिन दुविधा में पड़े विभीषण,
राज द्रोही या राम भक्त, लंका छोड़ चले राम शरण !
राज द्रोही या राम भक्त, लंका छोड़ चले राम शरण !
आरम्भ हुआ एक भीषण युद्ध , दानव वानर में हुई टकरार,
मण्डोदरी पहुंची लंका सभा में , रोक लो अब इस रण को नाथ !
मण्डोदरी पहुंची लंका सभा में , रोक लो अब इस रण को नाथ !
"प्रहस्थ कुम्भ निकुम्भ की मृत्यु, राम कर रहे दानव संहार
युद्ध का परिणाम सदा है विनाश, कोई भी कर ले प्रथम प्रहार!"
युद्ध का परिणाम सदा है विनाश, कोई भी कर ले प्रथम प्रहार!"
कुम्भकर्ण जगे गंभीर निद्रा से, लंका की स्थिति है बड़ी विचलित,
कौन ये शत्रु कहा से आया, असुर के गति देख हुए चिंतित !
कौन ये शत्रु कहा से आया, असुर के गति देख हुए चिंतित !
" सुनो लंका के अधिपति ,हे दशानन, युद्ध नीति के बड़े विद्वान ,
दशरथ नंदन राम है नारायण, शत्रु का करो उचित अनुमान !
दशरथ नंदन राम है नारायण, शत्रु का करो उचित अनुमान !
लंका को दाव पे न लगाओ भैया, छोड़ दो अब उस स्त्री पर आस,
लक्ष्मी को ढूँढ़ते आये नारायण, भेज दो सीता को राम के पास !
लक्ष्मी को ढूँढ़ते आये नारायण, भेज दो सीता को राम के पास !
तर्क का अर्थ अब समझो भ्राता , आप तो मेरे पिता समान,
आप से प्रभावित मेरा जीवन , आप को अर्पित मेरा प्राण !"
आप से प्रभावित मेरा जीवन , आप को अर्पित मेरा प्राण !"
अंत समय अब निकट दिख रहा, युद्ध भूमि में खड़े है राम,
अपना धर्म निभाने चला मैं, कुम्भकर्ण का अंतिम प्रणाम !"
अपना धर्म निभाने चला मैं, कुम्भकर्ण का अंतिम प्रणाम !"
मायावी कहो या मेघनाथ , आँख मिचोली का ये खेल,
युद्ध उसके लिए एक क्रीड़ा है, रावण का पुत्र का कोई न मेल !
युद्ध उसके लिए एक क्रीड़ा है, रावण का पुत्र का कोई न मेल !
" पिता की आज्ञा सर आँखों पर , आपकी इच्छा आपकी चाह,
स्वयं हरी भी प्रकट हुए तो , रोक न पाएंगे आपकी राह !
स्वयं हरी भी प्रकट हुए तो , रोक न पाएंगे आपकी राह !
एक सीता क्या अनेक छीनलो, आपके साथ है मेरे वाण,
लंकेश की तुलना कोई न जग में, रावण जैसा न राजा महान !"
लंकेश की तुलना कोई न जग में, रावण जैसा न राजा महान !"
दशानन सुनो एक माता की आह, इस युद्ध ने लिया मेरे पुत्र को छीन,
आपके इस दुरभिमान के कारण, लंका की रानी है पुत्र विहीन !
आपके इस दुरभिमान के कारण, लंका की रानी है पुत्र विहीन !
निकल पड़े रण भूमि को रावण, पीड़ित पिता और घायल तात,
खो दिया अपने प्रिय लंका को, काश वो सुनते अनुज की बात !
खो दिया अपने प्रिय लंका को, काश वो सुनते अनुज की बात !
अंत हुआ रावण का राज्य, रक्त पात का भोज उठाएगा कौन ?
स्त्री की रक्षा या अग्नि परीक्षा, मन में विचलित सिया है मौन !
स्त्री की रक्षा या अग्नि परीक्षा, मन में विचलित सिया है मौन !
राम और रावण धर्म के ग्यानी, स्त्री हरण के अपराधी लंकेश,
स्त्री तो कोई वास्तु नहीं, कैसा न्याय है अग्नि प्रवेश !
स्त्री तो कोई वास्तु नहीं, कैसा न्याय है अग्नि प्रवेश !
समाज के रीत से राम विवश, सबसे कठिन सिया का बलिदान,
राज्य का अर्थ मित मुकुट नहीं, प्रजा की राय और उनका मान !
राज्य का अर्थ मित मुकुट नहीं, प्रजा की राय और उनका मान !
सत्य का प्रयास धर्म की रक्षा, होंठ पर आता एक ही नाम
देश में हो परदेस में बैठे, हम तो जपते जय श्री राम !!
देश में हो परदेस में बैठे, हम तो जपते जय श्री राम !!