Thursday, 14 October 2021

Ramayana Rendition - 2021

 This year the theme is the dialogue between Shri Hanuman and Ravana before the war.


लंका नगरी मेँ गंभीर समस्या , विचलित हो ऊठे राक्षस गण, सभा में व्यस्त है उनके राजा विध्वंस हो रहा अशोक वन ! एक वानर बैठा ऊँचा वृक्ष पर, मुख पर तेज है सूर्य समान, विशाल काया चंचल चक्षु , वायु से तीव्र है उसका उड़ान ! कोलाहल से रावण चिंतित, बंधी बनाने को दिए आदेश, वानर नहीं यह कोई मायावी सरल नहीं है लंका प्रवेश ! कौनसे वृक्ष पर छुपा है वानर, अति विशाल है अशोक वन, वानर जब किया खुद को समर्पित, आश्चर्य चकित हुए राक्षस जन ! बेड़ी लगाके बंधी बनाया, खींच ले चले भवन की ओर, कौन यह वानर कहा से आया, भरी सभा में मच गयी शोर ! "किसको चुनौती दे रहे वानर, लंका नगरी है मेरी शान, दशानन रावण नाम है मेरा, मर्कट तुम हो बड़े अज्ञान !" " क्षमा करो हे लंकापति रावण, सह नहीं पाया भूख और प्यास, बंधी बनाकर मांगे परिचय, विनम्रता की थी मुझको आस !" राजा बाली से आपका ठक्कर, आप का यश का है मुझको ज्ञान, अब परिचय मेरा सुनलो राजन, मेँ हूँ रामदूत पवनसुत हनुमान !" फिर मारुती ने दुम को हिलाया , बड़ता गया लम्बा वह पूँछ, देखे राक्षस हनुमत लीला , खड़ा हो गया आसान उंच "बात मेरी अब सुनो दशानन , देवी सीता नहीं है साधारण, प्रभु श्री राम है जग के रक्षक, पृथ्वी पधारे है लक्ष्मी नारायण !" "देवी सीता को लौटा दो राजन , श्री राम हृदय के बड़े निर्मल, उनके शरण मेँ ही आपका हित है, दिए वचन पर राम अटल !" "बस करो मर्कट मूर्ख प्रलाप, एक वानर करे मानव का जाप, तीनों लोक का मेँ अधिकारी, व्यर्थ है हमारा यह वार्तालाप !" "दो सन्यासी वन वन भटके , मिले न भिक्षा और न पानी, सुखी रहेगी राज भवन मेँ, बनेगी सीता लंका की रानी !" "मति भ्रष्ट हो गयी क्या रावण, श्री राम का तुम न करो अपमान, मानव दानव तो सामान्य प्राणी है, देव गण भी करे उन्हें सम्मान !" "अपने मृत्यु को न पुकारो दशानन, विभीषण बोले जोड़के हाथ, लंका की रक्षा असुर सुरक्षा, विनती मेरी तनिक सुनलो भ्रात !" " व्यर्थ हो रहा मेरा समय, मेरा कीर्ति और बल है अपार, इस वानर का अब प्राण चीन लो, युद्ध मेँ होगी राम की हार !" दूत का प्राण हरना पाप है, आपके नीति पर पड़ेगी दाग, भ्राता की विनती सुनके रावण , मारुती के पूँछ को लगा दी आग ! भस्म हो गयी लंका नगरी , भारी पड़ गयी रावण की भूल, बजरंग बली ने जब लगाई छलांग, स्वर्ण भवन की जगह रह गयी धूल ! मारुती रावण संवाद विफल, वानर दानव का हुआ संग्राम, दशानन रावण की हो गयी मृत्यु , विजयी हुए रघुनन्दन राम ! श्री हनुमान राम का स्नेह अपार, भक्त के हृदय मेँ स्वामी का धाम, देश मेँ हो परदेस मेँ बैठे, हम तो जपते जय श्री राम !

No comments:

Post a Comment